‘ए टू जेड’ घोटालों की हकीकत

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा था। तब भाजपा के बड़े नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली कांग्रेस पर हमले की कमान संभालते थे। पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण, प्रकाश जावडेकर, रविशंकर प्रसाद, मीनाक्षी लेखी जैसे प्रवक्ता थे, राजनाथ सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे और सबसे ऊपर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे। सबने मिल कर यह माहौल बनाया था कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। भ्रष्टाचार का नैरेटिव आम लोगों तक पहुंचना के लिए दो जुमले गढ़े गए थे। एक जुमला था ‘धरती, आकाश और पाताल तक का घोटाला’ और दूसरा जुमला था ‘ए टू जेड घोटाला’। भाजपा के नेता अंग्रेजी अल्फाबेट के हर अक्षर से एक घोटाला बनाए हुए थे, जिसका आरोप कांग्रेस पर लगाया जा रहा था। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़े गए इस चुनाव में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी। तब से भाजपा तीन बार सरकार बना चुकी है लेकिन ‘ए टू जेड घोटाले’ से जुड़े मामलों में एक लालू प्रसाद को छोड़ कर किसी व्यक्ति को सजा नहीं हुई है। उलटे एक एक करके घोटालों की जांच बंद हो रही है और आरोपी बरी होते जा रहे हैं।

भाजपा की ओर से गिनाए गए ‘ए टू जेड घोटाले’ में ‘सी फॉर कॉमनवेल्थ’ घोटाला होता था। इस घोटाले के मुख्य आरोपी कांग्रेस के तत्कालीन सांसद और इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेश कलमाडी थे। आरोप लगा था कि उन्होंने दिल्ली में 2010 में हुए कॉमनवेल्थ खेल आयोजन में घोटाला किया था। फॉर्मूला वन रेस को लेकर भी उन पर आरोप लगे थे लेकिन भाजपा का फोकस ‘सी फॉर कॉमनवेल्थ’ घोटाले पर ही था। तब की मनमोहन सिंह सरकार ने इस मामले में सीबीआई जांच शुरू कराई और ईडी की जांच भी शुरू हुई। कलमाडी जेल गए और उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो गया। अब स्थिति यह है कि दोनों एजेंसियों की जांच समाप्त हो गई है। 15 साल बाद दिल्ली की एक विशेष अदालत ने कलमाडी पर लगे धन शोधन के आरोपों में ईडी की ओर से दायर क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली है। इससे पहले सीबीआई ने 2014 में ही क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसे 2016 में स्वीकार कर लिया गया था। इस तरह भ्रष्टाचार का मूल मामला 2016 में बंद हुआ था और धन शोधन का मामला 2025 में बंद हो गया। कथित घोटाले के 15 साल बाद कह सकते हैं कि कोई घोटाला नहीं हुआ था और कलमाडी ने कोई गलती नहीं थी। उलटे उन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों का शानदार आयोजन किया था। उनके खिलाफ जो भी थोड़ी बहुत कार्रवाई हुई वह उनकी अपनी पार्टी की सरकार ने ही कराई।

ऐसा नहीं है कि यह इकलौता मामला है, जिसे भाजपा ने बड़े जोर शोर से उठाया और आरोपियों को क्लीन चिट मिल गई। भाजपा ने जो सबसे बड़ा मुद्दा उठाया था वह संचार घोटाले का था। भाजपा की ‘ए टू जेड’ की सूची में ‘टी फॉर टेलीकॉम’ घोटाला था। तत्कालीन सीएजी विनोद राय ने 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में गड़बड़ी का आरोप लगाया था और दावा किया था कि इससे सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का अनुमानित नुकसान हुआ है। इस एक लाख 76 हजार के अनुमानित नुकसान और घोटाले के आरोप इतनी जोर शोर से लगाए गए कि तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के संचार मंत्री और घोटाले के आरोपी ए राजा को पद से हटाया गया और उनको गिरफ्तार किया गया। यूपीए के घटक दल डीएमके के नेता करुणानिधि की सांसद बेटी कनिमोझी भी जेल गईं। कई बड़ी कंपनियों के बड़े अधिकारी जेल गए। लेकिन आरोप लगने के छह साल बाद 2017 में दिल्ली की विशेष अदालत ने सीबीआई और ईडी के मामले में ए राजा और कनिमोझी सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया। हालांकि उसके छह साल बाद मार्च 2024 में हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सीबीआई की अपील स्वीकार कर ली और इस मामले की फिर से जांच के आदेश दिए। लेकिन हकीकत यह है कि सारे आरोपी बरी हो गए। ए राजा और कनिमोझी सांसद बने और अब तो ए राजा तो लोकसभा के पीठासीन अधिकारियों की सूची में हैं यानी वे कभी कभी लोकसभा की कार्यवाही का संचालन भी करते हैं।

संचार की तरह दूसरा बड़ा घोटाला कोयला घोटाला था। भाजपा की ‘ए टू जेड’ की सूची में ‘सी फॉर कोयला’ घोटाला होता था। जिस तरह से संचार घोटाले में एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए के अनुमानित नुकसान का आकलन किया गया था उसी तरह कोयला घोटाले में तीन लाख 30 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान जाहिर किया गया। 2006 से 2008 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा से लेकर भारत सरकार के तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता तक इस मामले में आरोपी थे। इस घोटाले की आंच मनमोहन सिंह तक पहुंची थी क्योंकि थोड़े समय तक कोयला मंत्रालय उनके पास भी था। अब स्थिति यह है कि दिल्ली की एक विशेष अदालत ने अप्रैल 2025 में एचसी गुप्ता और केएस क्रोफा को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। अदालत ने कहा कि उन्होंने कोई रिश्वत नहीं ली थी। उनके ऊपर गुमराह करने के आरोपों को भी अदालत ने खारिज कर दिया। बाकी आरोपियों का बरी होना भी महज वक्त की बात है।

भाजपा के ए टू जेड घोटालों की सूची आदर्श घोटाले से शुरू होती थी। ‘ए फॉर आदर्श’ घोटाला। इस मामले में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण मुख्य आरोपी थी। उनके ऊपर आरोप लगाया गया था कि कारगिल शहीदों के लिए सरकारी जमीन पर बनी आदर्श सोसायटी में बड़ा घोटाला हुआ और दूसरे लोगों को फ्लैट आवंटित किए गए। इस घोटाले के मुख्य आरोपी अशोक चव्हाण अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। इसलिए उनका सभी आरोपों से बरी होना महज वक्त की बात है। भाजपा की सूची में ‘एम फॉर मधु कोड़ा’ घोटाला कहा जाता था। उनके खिलाफ भी कोई आरोप प्रमाणित नहीं हुआ है और वे भी अपनी पत्नी के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं। सो, आदर्श से लेकर बोफोर्स और कॉमनवेल्थ से लेकर केतन पारिख और यूटीआई घोटाले से लेकर वेस्टलैंड अगस्ता तक सभी मामलों में या तो आरोपी बरी हो गए हैं या आरोपी भाजपा में शामिल हो गए हैं या मामलों की फाइल कहीं दबी पड़ी है।

ले देकर एक लालू प्रसाद को सजा हुई। लेकिन वह भी इसलिए हो पाई क्योंकि उस मामले की जांच 1997 से चल रही थी और 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने तक सारी जांच होकर मामला अदालत में पहुंच चुका था, जहां सबूत पेश हो चुके थे और गवाहियां हो चुकी थीं। दूसरे, मामले को अदालत तक ले जाने वाले जदयू नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह लगातार इस मामले को फॉलो कर रहे थे। केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद लालू प्रसाद के ऊपर जो आरोप लगे हैं उनमें से किसी में उनको सजा नहीं हूई है। पुराने मामले में सजा का कारण यह भी था कि लालू प्रसाद कभी भाजपा के साथ नहीं जा सकते थे और उनको सजा होने का राजनीतिक लाभ बिहार में था।

सोचें, भारत की क्या नियति है? क्या विडम्बना है? यहां जितने भी घोटाले खुलते हैं या भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं उनके पीछे एक राजनीतिक मकसद होता है और घोटालों की जांच जारी रहने या बंद हो जाने के पीछे भी राजनीतिक मकसद होता है। भारत में कानून के राज की बात होती है लेकिन जांच और कानून की प्रक्रिया से गुजर कर शायद ही किसी बड़े राजनेता को सजा होती है। अगर एकाध लोगों को सजा हुई है तो वह भी अपवाद ही है। यह भी विडम्बना है कि जो पार्टी भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर चुनाव जीतती है वह भी उन आरोपों को साबित करने और दोषियों को सजा दिलाने के लिए कुछ नहीं करती है। उलटे उन आरोपियों के सर पर जांच और गिरफ्तारी की तलवार लटका अपना राजनीतिक हित साधती है। नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि वे ऊपर से सफाई शुरू करेंगे यानी पहले नेताओं, अधिकारियों को सजा दिलाएंगे लेकिन उनके शासन के 11 साल बीत गए और उनके कार्यकाल में शुरू हुई किसी जांच में किसी को सजा नहीं हुई है। देश के लोगों को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *