एक साथ कितने काम होंगे!
सरकार ने कई बड़ी घोषणाएं और कई बड़े वादे कर दिए हैं। सब पर एक साथ अमल शुरू होने वाला है। अगर ऐसा होता है तो देश कई बरसों तक राजनीतिक और सामाजिक घटनाक्रमों में उलझा रहेगा। कहा जा रहा है कि सरकार अगले साल जनगणना कराएगी, जिसमें जातियों की गिनती होगी। इसके लिए संविधान संशोधन का बिल इस साल मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।
उसके बाद राज्यों और जिलों की भौगोलिक सीमा में बदलाव को रोकने का निर्देश जारी होगा और फिर जनगणना की अधिसूचना जारी होगी। इस बार जनगणना में जातियों की गिनती होगी। ध्यान रहे पूरा देश जाति को लेकर बहुत संवेदनशील और भावुक है। सभी जातियां अपनी गिनती कराने और संख्या बल बढ़ा चढ़ा कर दिखाने के प्रयास करेंगी। सो, जनगणना और जातियों की गिनती का काम हो सकता है कि लोगों को उलझाए रखे।
जाति गिनती और आरक्षण की तैयारी
उसके बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी। माना जा रहा है कि जनगणना में एक साल से ज्यादा का समय लगेगा और उसके आंकड़े आने के बाद सरकार परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करेगी। इस बीच एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव निकल जाएंगे। लेकिन जाति गणना से ज्यादा परिसीमन की प्रक्रिया टकराव का कारण बनेगी। केंद्र सरकार क्या पैमाना तय करती है और किस तरह सीटों की संख्या में बढ़ोतरी होती है वह देखने वाली बात होगी। जनगणना के बाद उसे लेकर टकराव बना रहेगा। सरकार ने ऐसे संकेत दिए थे कि 2029 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू हो जाएगा।
अगर सचमुच सरकार इसे लेकर गंभीर है और 2029 में इसे लागू करना चाहती है तो परिसीमन से पहले यह काम पूरा होगा। इसके भी कई पहलू हैं। महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण रैंडम होगा या उसका कोई फॉर्मूला बनेगा यह देखने वाली बात होगी। परिसीमन पर तो राज्यों की सामूहिक चिंता है लेकिन महिला आरक्षण पर नेताओं की निजी चिंता ज्यादा है। सब इस चिंता में हैं कि कहीं उनकी सीट आरक्षित न हो जाए। इस तरह अगले दो तीन साल देश जनगणना, जाति गिनती, परिसीमन और महिला आरक्षण में उलझा रहने वाला है।