भारत विश्वगुरू है या विश्वमित्र?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद से शायद कहीं नहीं कहा है कि भारत विश्वगुरू बन गया है या विश्वगुरू बन रहा है। हालांकि पार्टी की ओर से बार बार यह बात कही जाती है। भाजपा के आईटी सेल की ओर से इसका खूब प्रचार हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत के विश्वगुरू बनने का नैरेटिव भाजपा ने बनाया हुआ है। लेकिन अब खुद प्रधानमंत्री ने विश्वमित्र का नया जुमला गढ़ा है। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से कहा कि भारत विश्वमित्र बन गया है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का अटूट साथी है। अब सवाल है कि भारत विश्वगुरू है या विश्वमित्र? कहीं ऐसा तो नहीं है कि भारत अभी विश्वमित्र बन गया है और कुछ समय के बाद विश्वगुरू बनेगा?

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में एक बार फिर ग्लोबल साउथ का जिक्र किया और कहा कि इस समूह के नेताओं ने भारत को महत्व दिया है और उसके लिए बड़ी भूमिका तय की है। इससे पहले भाजपा की ओर से कई बार कहा जा चुका है कि दुनिया के एक सौ से ज्यादा देशों ने भारत को अपना नेता स्वीकार किया है। सोचें, यह बात भाजपा के नेता कह रहे हैं, जिन्होंने पहले दिन से पंडित नेहरू के गुटनिरपेक्ष आंदोलन का मजाक उड़ाया था। भाजपा के नेता कहते थे कि जिन देशों को कोई नहीं पूछता है उन गरीब देशों को इकट्ठा करके नेहरू विश्व नेता बन रहे हैं। अब वही भाजपा नेता भारत को ग्लोबल साउथ का नेता बताते नहीं थकते। उनको शायद अंदाजा नहीं है कि ग्लोबल साउथ के देशों का विश्व व्यवस्था में कोई खास मतलब नहीं है। इसमें ज्यादतर देश वही है, जो पहले गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा रहे हैं।

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