भारत कितना समझौता करेगा?

डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले विश्व अर्थव्यवस्था की यथास्थिति को तोड़ दिया। उन्होंने सब कुछ उलट पलट कर दिया। अमेरिका का व्यापार घाटा कम करने के नाम पर ट्रंप ने दुनिया के सारे देशों को पहले धमकी दी और बाद में सचमुच जैसे को तैसा टैरिफ लगा दिया। उन्होंने भारत और चीन सहित कोई दो दर्जन देशों पर भारी भरकम टैक्स लगाया। चीन के साथ तो टैरिफ वॉर शुरू हो गई थी, जो 145 फीसदी तक पहुंच गई थी। हालांकि ट्रंप बिजनेस समझते हैं इसलिए उन्होंने सबके टैरिफ रोक दिए और सभी देशों के साथ मोलभाव शुरू कर दिया। चीन के साथ सबसे पहले उनका व्यापार समझौता हुआ है। अब चीन में अमेरिकी उत्पादों परर 10 फीसदी आयात शुल्क लगेगा और अमेरिका में चीन के उत्पादों पर 30 फीसदी शुल्क लगेगा। दोनों देश इसे अपनी अपनी जीत मान रहे हैं।

भारत ने जैसे को तैसा टैरिफ की घोषणा से पहले ही अपने यहां अमेरिकी उत्पादों पर टैक्स कटौती शुरू कर दी थी। बजट में हार्ले डेविडसन सहित छह सौ सीसी से ऊपर की बाइक्स, अमेरिकी ब्रांड की शराब, परफ्यूम आदि पर टैक्स कम कर दिए थे। ट्रंप को पता था कि वे भारत को झुका लेंगे इसलिए भारत के टैक्स कटौती करने से पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया था कि भारत पर्याप्त टैक्स कटौती के लिए तैयार है। बाद में उनकी बात सही साबित हुई। तभी अब जब वे कह रहे हैं कि भारत कुछ अमेरिकी उत्पादों पर जीरो टैरिफ लागू करने पर सहमत हो गया है तो लग रहा है कि कहीं उनकी यह बात भी सही साबित न हो जाए। ध्यान रहे अभी तक भारत के साथ अमेरिकी का व्यापार संधि नहीं हुई है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अगले हफ्ते अमेरिका में रहेंगे और व्यापार संधि की शर्तों पर बात करेंगे।

सवाल है कि क्या भारत जीरो टैरिफ के लिए सहमत हो जाएगा? क्या भारत कृषि सेक्टर अमेरिकी उत्पादों के लिए खोल देगा? क्या भारत का कृषि सेक्टर इसके लिए तैयार है? दूसरे देशों के मुकाबले भारत के साथ समस्या यह है कि भारत की आधी से ज्यादा आबादी आज भी कृषि सेक्टर पर निर्भर है। भले भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 15 फीसदी या उससे भी कम हो गया है लेकिन रोजगार अब भी 50 फीसदी से ज्यादा उसी सेक्टर में है। दूसरे भारत की डेढ़ सौ करोड़ की आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चिंता रहती है। इसलिए अपने कृषि सेक्टर को सुरक्षित रखने के लिए भारत कृषि उत्पादों पर जीरो से डेढ़ सौ फीसदी तक टैक्स लगाता है। दूसरी ओर अमेरिका है, जिसके यहां मशीनीकृत खेती, उन्नत बीज, खाद और मौसम की वजह से उत्पादन बहुत ज्यादा होता है। उसके कुल निर्यात में करीब 10 फीसदी हिस्सा कृषि उत्पादों का है। वह 15 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कृषि उत्पादों का निर्यात करता है।

भारत के साथ व्यापार संधि में अमेरिका दबाव डाल रहा है कि भारत अपना कृषि सेक्टर खोले। उसने कहा है कि अब इसे बंद नहीं रखा जा सकता है। हाल ही में भारत ने ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार संधि की है और यूरोपीय संघ के साथ भी व्यापार संधि की वार्ता चल रही है। अगर भारत अमेरिका के साथ व्यापार संधि करता है तो उसमें अनेक उत्पादों पर जीरो टैरिफ करना होगा और बाकी उत्पादों पर भी टैरिफ की दर कम करनी होगी। इसके बाद अगर अमेरिका अपने उत्पाद भारतीय बाजार में लाना शुरू करता है तो सोचें क्या होगा! भारत के किसान उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य का सिद्धांत बेकार हो जाएगा। अमेरिकी उत्पादों से भारत का बाजार भर जाएगा। अमेरिका अपने यहां कृषि पर बहुत ज्यादा सब्सिडी देता है, जिससे उसके उत्पाद भारत में सस्ते बिकेंगे। इससे भारत में कृषि सेक्टर कमजोर होगा, उत्पादन कम होगा और अंततः उसका असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। देश की अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित होगी क्योंकि कृषि पैदावार कम होने पर रोजगार घटेगा। तभी क्या व्यापार संधि के समय पीयूष गोयल यह कहने की स्थिति में होंगे कि अमेरिका किसानों को मिलने वाली सब्सिडी कम करे तभी कृषि सेक्टर खुलेगा?

भारत के साथ एक बड़ी समस्या यह भी है कि अगर वह अमेरिका के साथ व्यापार संधि के तहत कृषि सेक्टर उसके उत्पादों के लिए खोलता है तो दूसरे देश भी भारत से ऐसा ही करने की मांग करेंगे। वे अपने उत्पादों के लिए कृषि सेक्टर खोलने और टैरिफ कम करने की मांग करेंगे। यह स्थिति किसी भी हाल में भारत के लिए अच्छी नहीं मानी जा सकती है। तभी यह देखना होगा कि भारत कैसे इस दबाव का मुकाबला करता है।

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