पकड़ो रिश्वतखोरो को , लूटे जो कमजोरों को
ये दफ्तर है या बाजार, बंद करो यह भ्रष्टाचार पकड़ो रिश्वतखोरो को , लूटे जो कमजोरों को।राजनेता, आईएएस और भ्रष्टाचार ।
[ स्वतंत्र पत्रकार- राजेंद्र सिंह गहलोत ]
राजनेता और आईएएस, भारतीय प्रशासनिक सेवा के कार्यकर्ता। इन दोनों का एक दूसरे के बिना काम भी नहीं चलता और यहां मालिक और नौकर का रिश्ता भी आ जाता है, क्योंकि लोकतंत्र में जनता किंग है यानी राजा, और जनता के प्रतिनिधि यानी विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री ये सब राजा की भूमिका में होते हैं, और इनके कार्यकर्ता होते हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आये विधार्थी, चूंकि ये सरकारी सेवा की सबसे ऊंची नौकरी सही, लेकिन है तो नौकरी ही, और नौकरी करने वाले को नौकर कहते हैं, यानी आईएएस सबसे बड़ा नौकर।
शायद इसीलिए राजनेता आईएएस को अपने नौकर से ज्यादा कुछ नहीं समझते, इसीलिए कभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक आईएएस पर भरी सभा में माइक बंद होने पर माइक फेंक कर गुस्सा निकालते हैं, कभी मुख्यमंत्री भजनलाल आदेश देते हैं कि विधायकों की बात सुनी जाये। अभी हाल ही में विधानसभा के दूसरे सत्र में 30 प्रतिशत से ज्यादा सवालों के जवाब नहीं आने पर, अखबारों में हैडिंग बनी थी कि काम करना तो दूर, जवाब देने में भी लापरवाही बरत रहे अफसर।
तो क्या यह माना जाये कि मुख्यमंत्री भजनलाल का कोई खौफ नहीं है इन अफसरों को, यह मुख्यमंत्री को बहुत हल्के में ले रहे हैं, कुछ तो दबी जुबान से पर्ची मुख्यमंत्री भी कहते हैं, यह शर्मनाक बात है, पर्ची के हों या बिना पर्ची के, आज की तारीख में भजनलाल राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं, उन्हें वह सम्मान तो देना ही पड़ेगा जिसके वह हकदार हैं।
विधानसभा अध्यक्ष देवनानी ने कहा था कि ब्यूरोक्रेसी विधायकों के सवालों को महत्व न दे, यह बर्दाश्त के लायक नहीं और मुख्य सचिव सुधांशु पंत, अभय कुमार, अखिल अरोड़ा, अपर्णा अरोड़ा, कुलदीप रांका, आनन्द कुमार, प्रवीण गुप्ता, वैभव गालरिया, टी.रविकांत, गायत्री राठौड़, बृजेन्द्र जैन, सुबीर कुमार, अजिताभ शर्मा, राजेश यादव, दिनेश कुमार, भवानी सिंह देथा, अश्विनी भगत, जोगाराम, महेंद्र सोनी, अम्बरीष कुमार, अर्चना सिंह, पूनम, नीरज के. पवन, आरूषि मलिक, शुचि त्यागी, के.के.पाठक, उर्मिला राजोरिया, समित शर्मा, रवि जैन, भानुप्रकाश एटूरू, कृष्ण कुणाल, पी. रमेश, राजन विशाल, अनुपमा जोरवाल, और मंजू राजपाल की क्लास ली और कहा कि कार्य के प्रति लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी, विधानसभा में 200 विधायक बैठते हैं, ब्यूरोक्रेसी उनको महत्व न दे, यह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
असल में जो बात मेरे समझ में आ रही है वह यह कि यह मालिक और नौकर की लड़ाई है, मालिक यानी जनप्रतिनिधि, जो कि वे हैं भी, क्योंकि भारत लोकतांत्रिक देश है, और नौकर यानी आईएएस, जो कि वे हैं भी, लेकिन वे गवर्मेंट सर्वेंट की बजाय अपने आपको मालिक समझने लगते हैं और समझते हैं कि अधिकांश राजनेता ज्यादा पढ़े लिखे तो होते नहीं फिर भी वे हम पर हुकूमत चलाते हैं यह बात अंदर ही अंदर उनको कचोटती रहती है। दूसरी ओर राजनेता सोचता है कि हम गवर्मेंट और आईएएस गवर्मेंट सर्वेंट हैं, गुलामी तो इनको हमारी करनी ही पड़ेगी। जब मैं अपनी किताब एम. एल. ए. जननायक या खलनायक, में विधायकों के साक्षात्कार ले रहा था तो एक विधायक ने कहा था कि मैंने सोचा कुछ ऐसा बना जाये कि आईएएस मेरा नौकर रहे, तभी मैंने ठान लिया कि राजनीति में जाना है विधायक बनकर, वहां आईएएस मेरा नौकर रहेगा।
तो असल में ये लड़ाई पद और प्रभाव की है, जो दिखावे तक पहुंच जाती है, जब आईएएस भी राजनेता की बराबरी करती हुई 350 रूपए की पानी की बोतल पीती है, मंजू राजपाल आईएएस के बारे में यह सर्वविदित है कि वह 350 रूपए की तो पानी की बोतल पीती है, लाखों रुपए तनख्वाह है तो पी सकती हैं, तिलम संघ, एपेक्स बैंक और कोनफेड जैसे विभागों की प्रमुख है और 3-4 गाडियां उपभोग में ले रही हैं तो कुछ भी कर सकती है, इनके बावजूद भी ब्यूरोक्रेसी में उनकी ईमानदारी की चर्चा होती है। क्यों होती है किसी को पता नहीं।
हालांकि वह स्वयं मानती हैं कि उनके दुश्मन भी हैं, तभी तो जब उनके पति अमित वी. सावंत की कार में करीब 500 ग्राम चरस पकड़ी गई थी, एफआईआर भी दर्ज हुई थी और मंजू राजपाल ने सफाई दी थी कि उनके पति को साजिश के तहत झूंठा फंसाया गया है, बाद में उसमें सीआईएसएफ कमांडेंट और एक वकील को साजिश रचने के तहत गिरफ्तार भी किया गया था, ख़ैर ये पुरानी बात हो गई।
नीरज के.पवन की राजनेताओं जैसी कार्यप्रणाली और दोस्ती जगजाहिर है। सरकार के अत्यधिक नजदीकी एवं सूचना एवं तकनीकी विभाग से संबंधित तथा अन्य बड़े विभागों के सचिवों की ईमानदारी भी सर्वविदित है।
भारत में एसीबी भी मौजूद है, जिसने भ्रष्टाचार की जांच कर कई आईएएस को जेल के सींखचों के पीछे पहुंचा दिया, आय से अधिक संपत्ति की जांच तो कभी भी किसी भी आईएएस की हो सकती है कि तनख्वाह तो इतनी है और इतना एशो-आराम का सामान कहां से आ रहा है, इस सामान में से तो भ्रष्टाचार की बू आ रही है।
ऐसा नहीं है कि मैं आईएएस के खिलाफ हूं बल्कि मैंने 17 सितंबर, 2022 को चैंबर भवन के मोहनलाल सुखाडिया मेमोरियल हॉल में बी.एल.सोनी, आईपीएस, डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस, एंटी करप्शन ब्यूरो, राजस्थान, जयपुर से मीडियाकर्मी के नाते सवाल करते हुए ओपन में माइक पर पूछा था कि आपने छोटी मछलियां पकड़ी है, अधिक से अधिक सरकारी नौकरी वाले आईएएस, लेकिन बड़ी मछलियां और मगरमच्छ तो आपकी पकड़ से दूर ही रहे हैं, क्योंकि बड़ी मछलियां और मगरमच्छ सरकारी कर्मचारी या अधिकारी नहीं हैं, राजनेता हैं, विधायक है, मंत्री हैं, अधिकांश भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, मैंने मेरी किताब आज के पार्षद, कल के एम.एल.ए. के जरिए इनका भंडाफोड़ किया है, यह किताब एक दस्तावेजी साक्ष्य है, आप इस आधार पर स्वयं जांच करके भ्रष्ट पार्षदों और भ्रष्ट विधायकों पर आय से अधिक संपत्ति का या अन्य भ्रष्टाचार संबंधित मुकदमा दर्ज कर सकते हैं। मैंने बी.एल.सोनी को यह किताब भेंट भी की, इस पर सभागार में बैठे सारे करोड़पति व्यवसायियों ने इस बेबाक अंदाज में किये गये सवाल की तारीफ की।
सवाल यह है कि मीडिया की चौथी नजर हर भ्रष्टाचारी पर है, चाहे वह राजनेता हो, आईएएस हो, चाहे इन भ्रष्टाचारियों के हितैषी मीडिया के साथी हों, असल मीडिया किसी को बख्शेगा नहीं