अशोक गहलोत का हमला: 9 जिलों की समाप्ति को बताया जनविरोधी, सरकार पर राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप

जयपुर। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए भजनलाल सरकार द्वारा 9 नए जिलों को समाप्त करने के फैसले की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि राजस्थान में लंबे समय से नए जिलों की मांग की जा रही है ताकि प्रशासनिक कार्यों को बेहतर बनाया जा सके और योजनाओं का क्रियान्वयन तेज़ हो। उन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां राजस्थान से छोटे होने के बावजूद ज्यादा जिले हैं।

सरकार के फैसले पर सवाल

गहलोत ने सवाल उठाया कि अगर जिलों को समाप्त करना ही था, तो सरकार ने इसे बनने के एक साल बाद क्यों किया। उन्होंने दावा किया कि यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया और इसमें पारदर्शिता की कमी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला लिया गया, वह भाजपा से जुड़ा है, जिससे यह कदम राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित लगता है।

अशोक गहलोत ने कहा कि राज्य में डर और दबाव का माहौल बनाया गया है, जिसके कारण अधिकारी मजबूरी में बयान दे रहे हैं। उन्होंने इसे भाजपा का “मैनेजमेंट” बताया और कहा कि सरकार अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स का सहारा ले रही है।

योजनाओं की स्थिति और प्रशासनिक गिरावट

गहलोत ने राज्य में विकास कार्यों की धीमी गति और प्रशासनिक लापरवाही पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मेट्रो और सड़क निर्माण जैसी परियोजनाओं को रोक दिया गया है, जिससे राज्य की छवि और अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। अपराध बढ़ने और महंगाई ने जनता के जीवन को और मुश्किल बना दिया है। उन्होंने जोधपुर का उदाहरण देते हुए कहा कि एक साल में 12-15 हत्याएं होना कानून व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है।

मीडिया की भूमिका पर चिंता

गहलोत ने मौजूदा मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि गोदी मीडिया के चलते लोकतंत्र खतरे में है। ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग के डर से पत्रकार स्वतंत्रता से लिखने से कतराते हैं। उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बताया।

अशोक गहलोत ने भजनलाल सरकार के फैसले को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए कहा कि यह कदम जनहित के खिलाफ है। उन्होंने पत्रकारों और नागरिक समाज से आग्रह किया कि वे इन मुद्दों को उठाएं और जनता को सच्चाई से अवगत कराएं। राजस्थान में नए जिलों की आवश्यकता और प्रशासनिक सुधार की बहस ने एक बार फिर से जोर पकड़ लिया है, और इस पर सरकार की आगे की कार्रवाई का जनता को इंतजार है।

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