बिना मांगे मुर्मु को कई पार्टियों का समर्थन

विपक्षी पार्टियों ने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का साझा उम्मीदवार बनाया है। वे झारखंड से आते हैं और हजारीबाग सीट से सांसद होते रहे हैं। ऐसे में उम्मीद थी कि विपक्ष उनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाएगा तो झारखंड की पार्टियों और सांसदों, विधायकों का समर्थन उनको मिलेगा। लेकिन भाजपा के द्रौपदी मुर्मु को उम्मीदवार बनाने के बाद अब उस समर्थन की उम्मीद भी खत्म हो गई है। द्रौपदी मुर्मु संथाल आदिवासी हैं और झारखंड की राज्यपाल रही हैं। वे देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होने जा रही हैं। इसलिए झारखंड का पूरा समर्थन उनको मिलेगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा के अलावा भी बाकी विधायकों और सांसदों का समर्थन उनको मिले तो हैरानी नहीं होगी। ध्यान रहे शिबू सोरेन भी संथाल आदिवासी हैं और जीवन भर आदिवासियों के हितों और जल-जंगल-जमीन के संरक्षण की लड़ाई लड़ी है।

द्रौपदी मुर्मु ओड़िसा की रहने वाली हैं और राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने पहले ही कह दिया है कि उनका राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनना ओड़िसा के लिए गर्व की बात है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बारे में उनसे बात की थी। सो, बीजू जनता दल का पूरा समर्थन उनको मिलेगा। बड़ा सवाल छत्तीसगढ़ को लेकर है। आदिवासी बहुल इस राज्य में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस ने यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी वोटों का महत्व समझते हुए पार्टी को फैसला करना होगा।

मुर्मु देश की पहली आदिवासी हैं, जो सर्वोच्च पद पहुंचेंगी। ऐसे में एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस को अपने फैसले के बारे में पुनर्विचार करना होगा। ध्यान रहे कांग्रेस पहले भी एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार एपीजे अब्दुल कलाम का समर्थन कर चुकी है। उससे पहले केआर नारायणन की उम्मीदवारी का समर्थन भी कांग्रेस और भाजपा दोनों ने एक साथ किया था। इसलिए अगर द्रौपदी मुर्मु को भी कांग्रेस समर्थन दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। हालांकि पहले के मुकाबले इस बार फर्क यह है कि अभी भाजपा और कांग्रेस का सद्भाव बहुत बिगड़ा हुआ है, जबकि पहले विरोधी होने के बावजूद संबंध अच्छे थे।

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