ये जो हकीकत है
डब्लूएचओ और यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में ग्रामीण भारत में 17 प्रतिशत लोग खुले में शौच कर रहे थे। भारत की कुल आबादी करीब 1.40 अरब है, जिसमें करीब 65 प्रतिशत लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।
भारत सरकार ने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान के तहत 2019 में देश को खुले में शौच की समस्या से मुक्त घोषित कर दिया था। हालांकि पहले भी अनेक अध्ययन रिपोर्टों में इस दावे को चुनौती दी गई, लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और यूनिसेफ ने सरकारी दावे के उलट तस्वीर पेश की है। अपेक्षित है कि सरकार इससे आहत ना हो। हकीकत को स्वीकार करना सुधार की दिशा में पहला कदम होता है। अगर सरकार ने गलत सूचनाओं के आधार पर चार साल पहले दावा किया था, अब जरूरत उसमें सुधार की है। डब्लूएचओ और यूनिसेफ ने पानी की सप्लाई और स्वच्छता पर अपने साझा निगरानी कार्यकर्म की ताजा रिपोर्ट जारी की है, जो 2022 तक इन मोर्चों पर अलग-अलग देशों में हुई तरक्की की जानकारी देती है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में ग्रामीण भारत में 17 प्रतिशत लोग अभी भी खुले में शौच कर रहे थे। भारत की कुल आबादी करीब 1.40 अरब है, जिसमें करीब 65 प्रतिशत लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। तो इस रिपोर्ट का अर्थ है लगभग 15 करोड़ लोग आज भी खुले में शौच करते हैं।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया है कि ग्रामीण भारत में करीब 25 प्रतिशत परिवारों के पास अपना अलग शौचालय भी नहीं है। जबकि सरकार ने कहा था कि अब सभी परिवारों को शौचालय उपलब्ध करवा दिया गया है। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी दोनों संस्थाओं ने यह माना है कि भारत ने खुले में शौच से लड़ाई में लगातार तरक्की हासिल की है, लेकिन उनका कहना है कि इसके लिए तय लक्ष्य को पूरा करना अभी बाकी है। गौरतलब है कि भारत सरकार के ओडीएफ लक्ष्यों, परिभाषा और दावों को लेकर शुरू से विवाद रहा है। चूंकि परिभाषाएं बदल जाती हैं, इसलिए अलग-अलग रिपोर्टों से अलग तस्वीर सामने आती है। 2019-20 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के मुताबिक उस समय देश में कम-से-कम 19 प्रतिशत परिवार खुले में शौच कर रहे थे। बिहार, झारखंड और ओडिशा में तो यह संख्या 62, 70 और 71 प्रतिशत तक थी। इस सच को अस्वीकार करने से कोई लाभ नहीं होगा। जरूरत रणनीति में सुधार की है।