अब होगा एनीमिया मुक्त भारत!
गीता यादव, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में ‘एफसीएम इंजेक्शन के सफल परीक्षण के बाद केंद्र सरकार का 2047 तक भारत को एनीमिया मुक्त बनाने का सपना साकार होता नजर आ रहा है। चिकित्सकों को उम्मीद है कि नैनो मॉलिक्यूल पर आधारित यह इंजेक्शन गर्भवती महिलाओं में एनीमिया को नियंत्रित करने में कारगर साबित होगा।
आयरन की कमी के कारण भारत का हर तीसरा बच्चा जन्म के समय कम वजन का होता है। ‘संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की भारत के बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य की रिपोर्ट भयावह तस्वीर पेश करती है। इसे ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एवं महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट और खतरनाक बना देती है। 70 फीसदी भारतीय महिलाओं और बच्चों में आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे पौष्टिक तत्वों की गंभीर कमी होती है। भारत में प्रसव के दौरान होने वाली 20 से 40 फीसदी मौतें, एनीमिया के चलते होती हैं। पूरी दुनिया में जितनी मौतें होती हैं, उनका आधा केवल भारत में होती हैं। एनीमिया से सबसे ज्यादा पीड़ित गर्भवती महिलाएं होती हैं। लेकिन एक नए अध्ययन में सामने आया है कि पुरुष भी इसकी गिरफ्त में तेजी से आ रहे हैं। ‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्ािÓ में प्रकाशित एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि भारत में 15 से 54 वर्ष के लोगों में चार में से एक पुरुष किसी न किसी रूप में एनीमिया का शिकार है। एनीमिया का मतलब है, हीमोग्लोबिन में कमी होना। इसकी गंभीरता थकान, कमजोरी, चक्कर आना और उनींदापन जैसी स्थिति उत्पन्न करती है। इसकी वजह से विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों में कमजोरी देखी जाती है।
विभिन्न आयु वर्गाे में इसकी स्थिति अलहदा होती है। आयरन की कमी एनीमिया का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि अन्य स्थितियां जैसे, फोलेट बीटामिन बी-12 और विटामिन ए की कमी, पुराना सूजन, परजीवी संक्रमण और आनुवंशिक विकार आदि भी एनीमिया का कारण हो सकते हैं। देश में गर्भावस्था से जुड़ा एनीमिया, स्वास्थ्य से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है। जो न केवल मां, बल्कि विकसित हो रहे भ्रूण दोनों पर बुरा असर डालता है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठनÓ की एक रिपोर्ट के मुताबिक एनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जिसके दौरान रक्त में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे- 5 के अनुसार देश में 52.2 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं। जिनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम प्रति डेसी लीटर से कम होता है। करीब 10-20 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं मध्यम स्तर के एनीमिया (हीमोग्लोबिन 9.9-7 ग्राम प्रति डेसी लीटर) से पीड़ित होती हैं। वहीं करीब तीन प्रतिशत गर्भवती महिलाएं गंभीर एनीमिया से पीड़ित होती हैं, जिनके ब्लड में हीमोग्लोबिन की मात्रा सात मिलीग्राम से कम होती है।
आंकड़ों के अनुसार जहां 2019 से 2021 के बीच शहरी क्षेत्रों में रहने वाली 50 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में इनका आंकड़ा शहरों से अधिक रिकॉर्ड किया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार भारतीयों के खान-पान में पोषण की कमी इसकी एक बड़ी वजह है।
राजस्थान के झालावाड़ में गर्भवती महिलाओं पर किए एक अध्ययन से पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 81.1 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि गर्भावस्था के दौरान एनीमिया समय से पहले जन्म, भ्रूण के विकास के साथ-साथ गर्भपात और उच्च शिशु मृत्यु दर से लेकर मातृ मृत्यु के 20 से 40 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेदार है। ऐसा नहीं है कि सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है। भारत में गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की रोकथाम के लिए कई उपाय किए गए हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन और फोलिक एसिड की खुराक वितरित करना और पोषण के बारे में जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करना जैसे प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। इसके बावजूद गर्भवती भारतीय महिलाओं में एनीमिया एक आम समस्या बनी हुई है। इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक भारत में 50 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। जिसका महत्वपूर्ण संबंध उनकी भौगोलिक स्थिति, शिक्षा के स्तर और आर्थिक समृद्धि से जुड़ा है। रिसर्च के मुताबिक गर्भावस्था से संबंधित एनीमिया अपर्याप्त पोषक आहार, आयरन की पर्याप्त मात्रा न मिल पाना या पहले से मौजूद स्थितियों के कारण हो सकता है। हैरानी की बात यह है कि शौचालय भी इस पर व्यापक असर डालते हैं। एक रिसर्च के अनुसार बेहतर शौचालय सुविधाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं में गंभीर से मध्यम एनीमिया होने की आशंका साढ़े सात फीसदी कम होती है। वहीं यदि भौगोलिक रूप से देखें तो भारत के दक्षिणी हिस्सों की तुलना में पूर्वी क्षेत्रों में एनीमिया का प्रसार 17.4 फीसदी अधिक है। इसलिए भारत सरकार का पूरा ध्यान इस बीमारी का जड़ से खात्मा करने पर है।
इसके लिए केंद्र सरकार ने 2018 में ही ‘एनीमिया मुक्त भारतÓ की रणनीति बनाई थी। इस अभियान का उद्देश्य पोषण अभियान, टेस्टिंग, डिजीटल तरीके और पॉंइंट ऑफ केयर का उपयोग करके एनीमिया का इलाज, फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का प्रावधान और सरकार द्वारा वित्त पोषित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा जागरूकता बढ़ाना है। गत वर्ष 2023 के बजट में भी केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हेल्थ बजट में घोषणा करते हुए देश को 2047 तक एनीमिया रोग से मुक्त करने का लक्ष्य रखा था।
हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के चिकित्सकों को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली है। लंबे शोध के बाद अब एक डोज इंजेक्शन से ही गंभीर एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं का सफल इलाज संभव हो पाएगा।
एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. कपिल यादव ने बताया कि देश की एक बड़ी आबादी एनीमिया से पीड़ित है और गर्भवती महिलाएं इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। लेकिन
अब सिंगल डोज आइइवी (इंट्रावेनस) आयरन इंजेक्शन से ही मध्यम व गंभीर एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं का इलाज संभव हो सकेगा। एम्स में इसके सफल ट्रायल के बाद इसे एनीमिया मुक्त भारत अभियान के तहत राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल करने की तैयारी की जा रही है। हमें उम्मीद है कि यह इंजेक्शन गर्भवती महिलाओं के लिए रामबाण साबित हो सकता है। यह आयरन इंजेक्शन पूरी तरह स्वदेशी और सुरक्षित है। लंबे समय से इस पर शोध का काम चल रहा था। दो साल से अस्पताल में तकरीबन 20,000 महिलाओं पर इसका ट्रायल किया गया है, जो सफल रहा है। अब दूसरे अस्पतालों में भी गंभीर मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा और एनीमिया मुक्त भारत का सपना साकार होने को गति मिलेगी। उन्होंने बताया कि गंभीर एनीमिया होने पर रोगी को ब्लड चढ़ाना पड़ता है या गर्भवती महिलाओं को आयरन के पांच से छह: इंजेक्शन देने पड़ते हैं। हर सप्ताह एक इंजेक्शन लगता है। लेकिन कई गर्भवती महिलाएं सभी इंजेक्शन नहीं ले पातीं। विदेश में फेरी कार्बोक्सी इसका माल्टोज (एफसीएम) इंजेक्शन किडनी व कैंसर मरीजों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। उसकी कीमत 3000-4000 रुपए है। यहां गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की बड़ी समस्या को ध्यान में रखकर गर्भवती महिलाओं पर इसका ट्रायल किया गया। जिसमें यह इंजेक्शन गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित और असरदार पाया गया। इसके बाद मॉलिक्यूल में थोड़ा बदलाव कर जेनेरिक स्वदेशी इंजेक्शन तैयार कर लिया गया है। इसकी कीमत भी करीब 300 रुपए है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे एनीमिया मुक्त भारत के वर्ष 2024 के निर्देश में शामिल कर लिया गया है। इसलिए उम्मीद है कि छह-सात माह में राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत यह मध्यम से गंभीर एनीमिया से पीड़ित महिलाओं को नि:शुल्क मिलने लगेगा। उन्होंने बताया कि अभी यह गर्भवती महिलाओं को ही लगाया जाएगा, लेकिन आने वाले समय में बच्चों के लिए भी उपलब्ध हो सकेगा।
आमतौर पर यह देखा जाता है कि पूरे घर की देखभाल और चिंता करने वाली महिलाएं अपने ही पोषण का उचित ख्याल नहीं रख पाती और एनीमिया का शिकार हो जाती है। ऐसे में यह इंजेक्शन उन महिलाओं के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आया है। फिर देखने वाली बात यह है कि इटली और जापान सिकल सेल रोग से मुक्त हो चुके हैं, तो भारत क्यों नहीं?