संघ के संगठनों का क्या मतलब
केंद्र में जब भी भाजपा की सरकार बनती है तो पार्टी, सरकार और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के रिश्तों को लेकर खूब चर्चा होती है। विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती हैं कि सरकार संघ के एजेंडे पर काम कर रही है। आजकल यहीं आरोप राहुल गांधी लगाते हैं। वे हर जगह कहते हैं कि उनको संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ना है। वे हर जगह कहते हैं कि देश की सारी संस्थाओं को नष्ट किया जा रहा है, वहां संघ के लोगों को बैठाया जा रहा है। राहुल ने कई बार कहा कि देश की हर संस्था में संघ का एक आदमी बैठा है। हो सकता है कि संस्थाओं में संघ के लोगों की नियुक्ति हुई हो। आखिर केंद्र सरकार को कहीं न कहीं से तो लोग लाकर संस्थाओं में रखने हैं तो संभव है कि संघ से लोग लाए गए हों। लेकिन इन लोगों का नीतिगत मामलों में कोई दखल होता है या कोई बड़ा फैसला करते हैं, ऐसा नहीं है।
चाहे संघ की ओर से नियुक्त कराए लोग हों या संघ के संगठन हों उनका कोई मतलब नहीं रह गया है। सारे नीतिगत फैसले सरकार करती है और उसका संघ की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं होता है। तभी संघ की संस्थाएं आर्थिक नीतियों से लेकर कृषि नीति, श्रम नीति, विनिवेश नीति आदि का विरोध करती रही हैं और सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। एक जमाना था, जब स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल जैसे संगठन खूब सक्रिय थे। देश भर में लोग अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया को जानते थे। लेकिन आज किसी को पता नहीं है कि ये संगठन कौन चला रहा है, इनका एजेंडा क्या है और कार्यक्रम क्या हैं।
मिसाल के तौर पर स्वदेशी जागरण मंच को देखें। वैश्वीकरण के हल्ले के समय इसका गठन किया गया था। दत्तोपंत ठेंगड़ी, मदनदास देवी, एस गुरुमूर्ति आदि के साथ मुरलीधर राव भी इसमें शामिल थे। भाजपा में जाने से पहले उन्होंने कई साल इस संगठन को चलाया। लेकिन आज मुरलीधर राव कहां हैं और यह संगठन कहां है! इस संगठन का गठन देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और छोटे कारोबारियों को बचाने के लिए हुआ था। इसने आर्थिक मामलों में जितनी राय दी, जो सुझाव दिए लगभग सब मोदी सरकार ने कूडेदानी में फेंक दिए। सरकार ने किसी पर ध्यान नहीं दिया। स्वदेशी जागरण मंच ने राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेचने का विरोध किया था। मंच का कहना था कि एयर इंडिया के पास बेहिसाब संपत्ति है और सरकार को उसमें से कुछ संपत्ति बेच कर पैसे का इंतजाम करना चाहिए ताकि एक राष्ट्रीय विमानन सेवा चलती रह सके। लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। सीधे सीधे राष्ट्रीय विमानन कंपनी को लगभग मुफ्त में टाटा समूह को दो दिया गया।
इसी तरह स्वदेशी जागरण मंच बरसों से इस बात का आंदोलन चला रहा है कि चीन की कंपनियों को भारत में ठेका देना बंद करना चाहिए। चीन के साथ कारोबार कम करने के लिए मंच का आंदोलन चलता है। लेकिन सरकार उलटे ज्यादा से ज्यादा ठेका चीनी कंपनियों को दे रही है और चीन के साथ भारत का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है। भारी घाटे के बावजूद चीन के साथ भारत का कारोबार पहली बार एक सौ अरब डॉलर से ज्यादा का हुआ है। चीन की कंपनियां भारत में खुल कर कारोबार कर रही हैं। यहां तक कि ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में भी चीन के निवेश वाली कंपनियों को जगह मिली है। ऐसे ही मंच ने अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को रोकने के लिए आंदोलन किए। उनका कहना था कि इससे देश के छोटे कारोबारियों को बड़ा नुकसान होगा। लेकिन रोकने की बजाय विदेशी रिटेल कंपनियों को कई तरह की छूट दी गई। स्वदेशी जागरण मंच चाहता है कि हेल्थ इंश्योरेस के क्षेत्र में विदेशी कंपनियां न आएं, मंच चाहता है कि इंडिया नाम समाप्त करके सिर्फ भारत नाम रखा जाए, मंच चाहता है कि छोटे कारोबारियों को बढ़ावा दिया जाए लेकिन सरकार को इसकी परवाह नहीं है। यहां तक कि स्वदेशी जागरण मंच के स्वावलंबी भारत का नारा भी प्रधानमंत्री ने नहीं अपनाया। उसकी जगह आत्मनिर्भर भारत कहा गया।