देश अंधविश्वासी होता जा रहा!
कायदे से धर्म और अंधविश्वास एक दूसरे के विरोधी होने चाहिए। जहां धर्म हो वहां अंधविश्वास के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन भारत में उलटा है। जिस तेजी से धर्म के प्रति आस्था और उस आस्था का प्रदर्शन बढ़ रहा है उसी तेजी से अंधविश्वास भी बढ़ रहा है। धर्म अंधविश्वास को बढ़ाने का कारक बन गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि धर्म अब दिखावे और प्रदर्शन का काम हो गया है। उसे कर्मकांड का विषय बना दिया गया। धर्म को लेकर जितनी भी वैज्ञानिक चर्चाएं थीं या आदि शंकराचार्य की शिक्षा थी उन्हें कूड़ेदानी में डाल दिया गया है। कर्मकांडों को प्रमुखता दी जाने लगी है। भारत की सत्ता याकि प्रधानमंत्री के स्तर से इसका प्रचार हुआ है। वे खुद धर्म से जुड़े तमाम किस्म के आडंबर में शामिल हुए हैं। यह धारणा बनवाई है कि वे जो हैं महादेव के कारण हैं या भगवान राम के कारण हैं या मां गंगा की वजह से हैं। लोग भी मानने लगे हैं कि उन पर महादेव की कृपा है। यह धारणा कैसे लोगों को प्रभावित करती है वह राहुल गांधी के आचरण से देखने को मिली है। वे अपने को शिवभक्त बताते हुए कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर चले गए।
सोचें, इस सबका आम आदमी पर क्या असर होता होगा? क्या आम लोग भी ऐसा नहीं सोचते होंगे कि जब महादेव की कृपा से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली है तो उनको भी भक्ति से कुछ न कुछ मिलेगा। तभी देश भर में भक्ति की लहर चली हुई है? सुबह से शाम तक सोशल मीडिया में देवी-देवताओं की फोटो शेयर करने, तिथि-पंचांग पर चर्चा करने, पूजा की विधियों के बारे में बताने-दिखाने का जो चलन है वह इसी वजह से है।
मैकियावेली ने छह सौ साल पहले कहा था- धर्म राजनीति में एक महत्वपूर्ण कारक है। जनता में धार्मिकता को प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि धार्मिक जनता पर शासन करना आसान होता है। क्या यही काम प्रधानमंत्री नहीं कर रहे हैं? वे और उनकी सरकार धार्मिकता को प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि धार्मिक जनता पर आसानी से शासन किया जा सके। धार्मिक जनता सवाल नहीं पूछती है। वह अपने जीवन के कष्टों के लिए सरकार को नहीं, बल्कि अपनी नियति और ईश्वर के न्याय को जिम्मेदार मानती है। इससे सरकार का काम आसान हो जाता है। जनता का पुरषार्थ, उसकी भूख, उसकी आकांक्षाएं सब अंधविश्वासी टोटको, लाल जादूओं में बदलते हुए है। इसका साइड इफेक्ट फिर समाज का भटकना, बिखरना, एक-दूसरे पर अविश्वास और अंत में नरबलि व आत्महत्या की प्रवृतियां।