मोदी का वह अंहकार और अब?

प्रधानमंत्री मोदी ने पांच फरवरी 2024 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए लोकसभा में कहा था कि अगले चुनाव के बाद जनता विपक्षी पार्टियों को दर्शक दीर्घा में बैठा देगी। प्रधानमंत्री के शब्द थे, ‘मैं विपक्ष के संकल्प की सराहना करता हूं। उनके भाषण की एक एक बात से मेरा और देश का विश्वास पक्का हो गया है कि इन्होंने लंबे अरसे तक वहां (विपक्ष में) रहने का संकल्प ले लिया है। आप लोग जिस तरह इन दिनों मेहनत कर रहे हैं, मैं पक्का मानता हूं कि जनता जनार्दन आपको आशीर्वाद देगी और आप जिस ऊंचाई पर हैं उससे भी ऊंचाई पर पहुंचेंगे और अगले चुनाव में दर्शक दीर्घा में दिखेंगे’।

इस भाषण केढाई महीने बाद रविवार को यानी 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो देश की संपत्ति ‘घुसपैठियों’ और ‘जिनके ज्यादा बच्चे हैं’ उनके बीच बांट देगी। मोदी ने अपने भाषण में कहा, ‘पहले जब कांग्रेस की सरकार थी तो उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब है कि ये संपत्ति इकट्ठी करके किसको बांटेंगे? जिनके ज्यादा बच्चे हैं उनको बाटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे। क्या आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा, यह आपको मंजूर होगा’? इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि ‘कांग्रेस ने घोषणापत्र में कहा है कि वह माताओं, बहनों के सोने, चांदी का हिसाब करेगी और उसे लेकर बांट देगी। कांग्रेस महिलाओं का मंगलसूत्र भी नहीं बचने देगी’।

प्रधानमंत्री मोदी के ये दोनों बयान चुनाव बदलने का ठोस संकेत हैं। यह बदलाव विपक्ष के दर्शक दीर्घा में पहुंच जाने की धारणा से लेकर उसके सत्ता में आने की संभावना तक का है। ढाई महीने पहले प्रधानमंत्री दावा कर रहे थे कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को जनता दर्शक दीर्घा में पहुंचा देगी, मतलब उनको एक भी सीट नहीं मिलेगी। लेकिन अब प्रधानमंत्री कांग्रेस का डर दिखा रहे हैं और कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आ गई तो वह देश के लोगों की गाढ़ी कमाई का हिसाब करेगी, वह सोने, चांदी का हिसाब करेगी और उसे लेकर दूसरे लोगों में बांट देगी।

पहली बार उन्होंने बांसवाड़ा में जब यह बात कही तो मुसलमानों की ओर स्पष्ट इशारा किया। व्यापक हिंदू समाज तक अपनी चिंता पहुंचा देने के एक दिन बाद यानी 22 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अपनी बात दोहराई लेकिन इस बार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मुस्लिम का जिक्र नहीं किया। हालांकि उन्होंने यह डर जरूर दिखाया कि कांग्रेस की नजर स्त्री धन पर है और लोगों के घरों पर है। उन्होंने कहा कि अगर किसी के पास दो घर हैं तो कांग्रेस एक घर ले लेगी और दूसरे लोगों को दे देगी। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को माओवादी और कम्युनिस्ट विचारधारा वाला बताया।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के सत्ता में आने का डर सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 22 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के कांकेर में कहा, ‘देश के मठ मंदिरों पर कांग्रेस की नजर है। यहां का पैसा कहां जाने वाला है? मनमोहन सिंह की बात याद करो, उन्होंने कहा था कि संसाधन, रेवेन्यू पर पहला अधिकार माइनोरिटी का है। हम कहते हैं कि पहला हक गरीबों, दलितों और आदिवासियों का है’। शाह ने आगे कहा, ‘कांग्रेस को मिर्ची लगी है। मोदी जी ने उनके घोषणापत्र में से सबकी संपत्ति का सर्वे कराने के निर्देश का जिक्र किया तो कांग्रेस प्रधानमंत्री पर सवाल उठा रही है। राहुल गांधी इसे स्पष्ट करें। क्यों करना है

इस सर्वे को’?

सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह चिंता सताने लगी कि कांग्रेस सत्ता में आ गई तो क्या कर देगी? कांग्रेस महज 20 फीसदी वोट की पार्टी है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि जो पार्टी चार सौ सीट जीत चुकी है उसे तीन सौ सीट पर लड़ने के उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। देश की जनता दो बार उसे ठुकरा चुकी है। भाजपा को 370 और एनडीए को चार सौ से ऊपर सीटें मिलने वाली हैं फिर अचानक कांग्रेस कहां से सत्ता की दावेदार बन गई? क्या पहले चरण की 102 सीटों के मतदान में गिरावट से भाजपा को इसकी चिंता सताने लगी है?

ऐसा लग रहा है कि मतदान प्रतिशत में गिरावट ने भाजपा को चिंता में डाला ही है लेकिन साथ ही मतदाताओं के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और प्रधानमंत्री मोदी के मजबूत नेतृत्व की बजाय जाति और उम्मीदवार के नाम पर वोट डालने की खबरों ने भी भाजपा को चिंता में डाला है। असल में इस बार चुनाव की कोई केंद्रीय थीम नहीं दिख रही है। कोई एक चीज ऐसी नहीं दिख रही है, जिससे लोगों में उत्साह और जोश हो। राममंदिर और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दे लोगों की स्मृति में हैं लेकिन वे इससे निर्देशित होकर वोट डालते नहीं दिख रहे हैं। यह बहुत दिलचस्प स्थिति है।

ऐसा भी नहीं दिख रहा है कि लोग बड़े जोश या उत्साह के साथ प्रधानमंत्री मोदी को हरवाने के लिए मतदान करने जा रहे हैं। वे जिताने के उत्साह में नहीं हैं तो हराने की जिद भी ठाने हुए नहीं दिख रहे हैं। तभी मतदान का प्रतिशत कम हो रहा है।

भाजपा को असली चिंता यह है कि जहां उसके सांसद हैं वहां मतदान का प्रतिशत ज्यादा कम हुआ है। 2019 के मुकाबले 2024 में पहले चरण की 102 सीटों पर चार फीसदी कम वोट पड़े हैं। लेकिन जहां भाजपा के सांसद जीते हैं उन सीटों पर मतदान प्रतिशत में 5.9 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि जहां विपक्षी पार्टियों के सांसद हैं वहां 3.2 फीसदी की गिरावट आई है। पिछली बार के मुकाबले इस बार 102 सीटों पर 76 लाख वोट कम पड़े हैं। इसका मतलब है कि औसतन हर सीट पर 75 हजार के करीब कम वोट पड़े हैं।

इससे कम अंतर की जीत हार वाली सीटों पर नतीजे बदल सकते हैं। वोट प्रतिशत और सीट की संख्या का अनुपात एक तकनीकी मामला है। भाजपा को 37 फीसदी वोट पर 55 फीसदी सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को 20 फीसदी वोट पर 10 फीसदी भी सीटें नहीं मिल पाईं। इस बार भाजपा ज्यादा सीटों पर लड़ रही है और कांग्रेस ऐतिहासिक रूप से सबसे कम सीट पर लड़ रही है। सो, वोट प्रतिशत से बहुत सी चीजें बदल सकती हैं।

बहरहाल, पिछले 10 साल में पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाली पार्टी और उसके नेता कांग्रेस के सत्ता में लौटने का खतरा बता कर वोट मांग रहे हैं। इसके लिए कांग्रेस के घोषणापत्र की मनमानी व्याख्या की जा रही है और करीब डेढ़ दशक पहले दिए एक बयान में उस व्याख्या को फिट करके कांग्रेस को निशाना बनाया जा रहा है।

हकीकत यह है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में देश में विद्यमान आर्थिक असमानता को दूर करने की बात कही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ब्रिटिश राज से भी ज्यादा असमानता हो गई है। हाल ही में जारी विश्व असमानता डेटाबेस की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि जब आर्थिक असमानता की बात आती है, तो भारत में स्थिति ब्रिटिश राज के तुलना में कहीं अधिक खराब हो गई है।

इसमें कहा गया है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, जो 81 करोड़ भूखे भारतीयों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करा रहा है, वहां भी अरबपति राज है, जिसमें 2022-23 में शीर्ष एक फीसदी आबादी के पास 22.6 फीसदी आय और 40.1 फीसदी संपत्ति है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। इस आर्थिक असमानता को दूर करने और संपत्ति के एकत्रीकरण की मौजूदा प्रवृत्ति को कमजोर करने की जरुरत है। अगर कांग्रेस या कोई भी पार्टी संपत्ति के पुनर्वितरण की बात करती है तो उसकी चिंता उन एक फीसदी लोगों को ज्यादा होगी, जिनके पास देश की 40 फीसदी संपत्ति इकट्ठा है।

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