धारीवाल के चहेते आर्किटेक्ट के अधिकांश प्रोजेक्ट अभी से फेल साबित होने लगे

जयपुर। राजस्थान में नगरीय विकास को देश-दुनिया में मॉडल के तौर पर पेश करने वाले मंत्री शांति धारीवाल के चहेते आर्किटेक्ट अनूप बरतरिया के अधिकांश प्रोजेक्ट अभी से फेल साबित होने लगे हैं। कोटा के चंबल रिवर फ्रंट पर एनजीटी की तलवार लटकी है। क्योंकि इसमें पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं ली गई है। अन्य वन्यजीव कानूनों का भी उल्लंघन है। इसी आधार पर एनजीटी अजमेर की आना सागर झील पर बने सेवन वंडर्स को तोड़ने के आदेश दे चुका है।

राजधानी जयपुर में सवाई मानसिंह अस्पताल के पास बन रहा आईपीडी टावर की जहां बनने से पहले ही लागत 100 करोड़ रुपए से बढ़कर 550 करोड़ रुपए हो गई है। वहीं पार्किंग की समस्या ने प्रशासन की नींद उड़ा दी है। पार्किंग के लिए महाराजा कॉलेज की जमीन देने से राजस्थान विश्वविद्यालय ने इनकार कर दिया है। वहीं इस प्रोजेक्ट में 2-3 साल की देरी होने की भी आशंका है।
इसी तरह लक्ष्मी मंदिर पर ट्रैफिक फ्री चौराहा लोगों की जान ले रहा है। यहां बने अवैध कट को खोलने से एक सप्ताह में दुर्घटना में एक दर्जन से ज्यादा बाइक सवार घायल हो चुके हैं, जबकि उदयपुर के एक युवक की जान भी जा चुकी है।

बता दें कि अभी देशभर में अरबन प्लानिंग का सबसे बेहतरीन मॉडल चंडीगढ़ को माना जाता है। जहां घर से सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर हर निवासी को पार्क और मार्केट की सुविधा उपलब्ध है। पर्याप्त हरियाली के कारण भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन भी है। चंडीगढ़ में मार्केट से लेकर पर्यटन स्थल तक कहीं भी यातायात में रुकावट नहीं है। हर सेक्टर में बने मार्केट में पर्याप्त पार्किंग की व्यवस्था है। वहीं पर्यटन स्थलों को भी इस तरह से बनाया गया है जिससे ट्रैफिक बाधित न हो। पर्यटक पार्किंग में वाहन खड़ा करके आराम से पर्यटन स्थल का आनंद ले सकते हैं।
इसके विपरीत राजधानी जयपुर और अन्य जगहों पर पर्यटन के लिहाज से जो चीजें बनाई गई हैं वे ट्रैफिक में बाधा उत्पन्न करने के साथ दुर्घटनाओं को न्यौता दे रही हैं। उदाहरण के तौर पर सवाई मानसिंह स्टेडियम पर जनपथ पर बनी अमर जवान ज्योति को ही ले लें तो यहां पर्यटकों के कारण अक्सर एक्सीडेंट का खतरा बना रहता है। इसी तरह टोंक रोड के लक्ष्मी मंदिर तिराहे पर लगाई गई स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाओं की वजह से दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। क्योंकि वाहन चालक सामने देखने के बजाय इन्हें देखने लगते हैं।

खास बात यह है कि इन आर्किटेक्ट पर नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल इस कदर मेहरबान थे कि अफसरों को सार्वजनिक रूप से मौके पर कह दिया था कि अपना दिमाग मत लगाओ, बरतरिया जो कहते हैं, वो करिए।
धारीवाल की नसीहत का असर यह हुआ कि चाहे आईपीडी टॉवर हो या लक्ष्मी मंदिर का सिग्नल फ्री तिराहा, ईपी चौराहा हो या चंबल रिवर फ्रंट सभी जगह या तो प्रोजेक्ट पूरे होने का ठिकाना नहीं है या लागत सैकड़ों करोड़ रुपए बढ़ चुकी है। रिवर फ्रंट की लागत भी 500 करोड़ रुपए से बढ़कर 1500 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है।

इंजीनियरों की मानें तो ये आर्किटेक्ट बरतरिया प्रोजेक्ट की इंजीनियरिंग डिजाइन और नक्शे भी विधिवत रूप से पास नहीं करवाते। बल्कि स्कैच बनाकर दे देते हैं। उसी पर इंजीनियरों को काम करना पड़ता है। प्रशासनिक हलकों में चर्चा है कि ये काम तो इस आधार पर लेते हैं कि अपनी फीस नहीं लेंगे। लेकिन, प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद इन्ही की चलती है।

नतीजा यह कि कोई प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं होता और लागत बढ़ जाती है। जबकि आरपीपीपी एक्ट के तहत किसी भी कुल परियोजना राशि की 50 प्रतिशत से ज्यादा राशि की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन, अत्यधिक लागत बढ़ने के कारण चंबल रिवर फ्रंट समेत कई प्रोजेक्ट पहले ही जांच के दायरे में हैं।

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