कई राज्यों में मध्यावधि सत्ता बदल

देश में एक कमाल का ट्रेंड देखने को मिल रहा है। बिना चुनाव हुए ही राज्यों में सत्ता बदल जा रही है। पिछले तीन साल में कम से कम चार बड़े राज्यों में ऐसा हुआ है। चुनाव के बाद सरकार कोई और बनी लेकिन बीच में ही सरकार गिर गई और नई सरकार बन गई। इनमें से तीन राज्यों में दूसरी पार्टियों की सरकार गिरा कर भाजपा की सरकार बनी है तो एक राज्य में भाजपा की गठबंधन सरकार गिरा कर दूसरी सरकार बनी है। इस तरह के ट्रेंड के मजबूत होने से राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता का दौर बढ़ गया है। मीडिया में ऐसे घटनाक्रम को भाजपा के मास्टरस्ट्रोक के रूप में ऐसा प्रचारित किया जाता है, जैसे असली राजनीति यहीं हो।

बहरहाल, शुरुआत कर्नाटक से हुई थी, जहां 2019 में कांग्रेस और जेडीए की साझा सरकार गिरा कर भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। वहां 2018 के चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी लेकिन चुनाव में हारी हुई कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर सरकार बनवा दी। एक-डेढ़ साल में ही भाजपा ने कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को तोड़ कर अपनी सरकार बना ली। इसके बाद मध्य प्रदेश में यहीं प्रयोग दोहराया गया। वहां 2018 के चुनाव में भाजपा हारी थी और कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल किया था। हालांकि दोनों पार्टियों में बहुत कम का अंतर था। इसका फायदा उठाते हुए 2020 के शुरू में भाजपा ने कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के जरिए कांग्रेस के विधायकों से इस्तीफे करा कर अपनी सरकार बना ली।

इसके बाद डेढ़ महीने के अंदर महाराष्ट्र और बिहार में सत्ता परिवर्तन हो गया। महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन उसकी चुनाव पूर्व सहयोगी रही शिव सेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बना लिया था। इस साल जून के अंत में शिव सेना में बगावत हो गई और बागी विधायकों को समर्थन देकर भाजपा ने नई सरकार बनवा दी। इन तीन राज्यों से उलट बिहार में भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़ दिया और भाजपा को अलग करके राजद, कांग्रेस व लेफ्ट के साथ तालमेल कर लिया। इन चार राज्यों के अलावा झारखंड में भी ऐसी सत्ता बदल की कोशिश चल रही है लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिल पाई है।

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