विश्व शक्ति की तरह बरताव करे भारत
यह अच्छी बात है कि भारत अपने सांसदों, पूर्व सांसदों और राजदूतों का प्रतिनिधिमंडल विदेश दौरे पर भेज रहा है। इसमें सभी दलों के नेता शामिल हैं। ये नेता दुनिया भर के देशों को भारत की सैन्य कार्रवाई यानी ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बताएंगे और साथ ही आतंकवाद पर भारत के रुख की जानकारी देंगे। यह एक अच्छी कूटनीतिक पहल है, जिसमें निजी तौर पर भारत के प्रतिनिधि दुनिया के देशों को जानकारी देंगे।
मीडिया के जरिए मिली जानकारी और निजी तौर दी गई जानकारी में फर्क तो आ ही जाता है। इससे दुनिया के देशों के लिए वास्तविक हालात को समझना आसान हो जाएगा। लेकिन सवाल है कि उसके बाद क्या होगा? इस सवाल को ऐसे भी पूछा जा सकता है कि उसके बाद दुनिया के देशों से भारत क्या उम्मीद कर रहा है?
क्या भारत का सत्ता प्रतिष्ठान यह सोच रहा है कि जानकारी मिलते ही दुनिया के देश पाकिस्तान के खिलाफ हो जाएंगे और एकजुट होकर भारत के साथ खड़े होकर भारत की कार्रवाई का समर्थन करेंगे? लेकिन कम से कम अभी ऐसा होने की संभावना कम दिख रही है।
तभी यह बहुत उलझाने वाली बात है कि भारत ने अचानक इतनी बड़ी संख्या में नेताओं और राजनयिकों को दुनिया भर के दौरे पर भेजने का फैसला क्यों किया? क्या इसके आगे का कोई रोडमैप भारत ने बनाया हुआ है या यह भी घरेलू राजनीति का नैरेटिव सेट करने की एक पहल भर है? अगर सीमा पार के आतंकवाद के खिलाफ भारत का कोई ठोस रोडमैप नहीं है और पाकिस्तान से निपटने की ठोस रणनीति नहीं है तो तय मानें कि इतनी भारी भरकम कवायद से कुछ हासिल नहीं होगा।
हां, यह जरूर होगा कि देश में एक नैरेटिव सेट होगा कि भारत ने पाकिस्तान की पोल खोल दी, दुनिया को बता दिया कि वह आतंकवादी मुल्क है और दुनिया अब भारत के साथ खड़ी हो गई है।
अगर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता विदेश में जाकर यह कहेंगे कि भारत की सेना ने बड़ी बहादुरी से सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया और पूरी सटीकता के साथ आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट किया और जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान भारत का कोई नुकसान नहीं कर पाया तो सोचें, फिर कैसे विपक्ष के नेता देश में घूम घूम कर सरकार पर सवाल उठाएंगे? तभी यह सवाल भी है कि क्या इस पूरी कवायद का मकसद विपक्ष को अपने नैरेटिव में उलझाना भर है?
बहरहाल, उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार का मकसद घरेलू राजनीति में विपक्ष के ऊपर बढ़त हासिल करना नहीं है, बल्कि वह गंभीरता के साथ वैश्विक बिरादरी के बीच आतंकवाद के खिलाफ माहौल बनाना चाहती है और पाकिस्तान को आतंकवादियों का सरपरस्त देश साबित करना चाहती है। यह अलग बात है कि दुनिया के देश पाकिस्तान की हकीकत से वाकिफ हैं और कई देश तो तक उसकी सरजमीं से संचालित होने वाली आतंकवादी गतिविधियों का शिकार भी बने हैं। पाकिस्तान की घरेलू राजनीतिक स्थिति से भी दुनिया वाकिफ है।
कैसे सेना की छत्रछाया में वहां लोकतंत्र चल रहा है और कैसे विपक्ष के नेता को जेल में बंद करके रखा गया है और कैसे चुनाव में धांधली करके इमरान खान की पार्टी को हराया गया, ये बातें दुनिया के देश जानते हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान दुनिया भर में अछूत नहीं हुआ है तो उसका कारण अमेरिका और चीन हैं। इन दो महाशक्तियों ने पाकिस्तान को अपना बगलबच्चा बना रखा है। अपने अपने कारणों से दोनों उसका बचाव करते हैं।
कभी अमेरिका उसको आर्थिक मदद देता या दिलाता है तो कभी चीन हथियार देता है और वीटो लगा कर पाकिस्तान के आतंकवादियों को ब्लैक लिस्ट होने से बचाता है। तभी भारत के किसी भी कूटनीतिक अभियान की कामयाबी इस पर निर्भर करेगी कि उसके बाद की क्या सामरिक तैयारी है और क्या भारत इन दोनों देशों, अमेरिका और चीन की अनदेखी करके पाकिस्तान की सरजमीं पर स्थित आतंकवाद के ठिकानों को नष्ट करके और पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तैयार है।
भारत बताएगा या कार्रवाई करेगा?
हम भारत के लोग इस मुगालते में हैं कि हम विश्वगुरू हो गए हैं। लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है। वास्तव में भारत एक बड़ी क्षेत्रीय शक्ति के तौर पर भी काम नहीं कर रहा है। महाशक्ति या विश्वशक्ति छोड़िए, दक्षिण एशिया में एक बड़ी शक्ति के तौर पर भी भारत काम नहीं कर रहा है। पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकवादियों के ठिकाने नष्ट करने और इस क्रम में पाकिस्तान के साथ हुए महज 88 घंटे के सैन्य टकराव ने बहुत कुछ साफ कर दिया है।
इस हकीकत को स्वीकार करना चाहिए कि दुनिया का कोई भी देश खुल कर भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ। इजराइल ने जरूर भारत की सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया लेकिन उसने भी मुंहजबानी समर्थन किया। दूसरी ओर पाकिस्तान को अनेक देशों का समर्थन मिला। चीन, तुर्की, अजरबैजान जैसे देश खुल कर उसके साथ खड़े हुए।
वह अमेरिका और चीन की ओर से दिए गए सैनिक साजोसामान से भारत के खिलाफ लड़ा और युद्ध के बीच अमेरिका ने उसको अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिलाया।
भारत की कैसी असहायता थी यह विदेश मंत्री एस जयशंकर की चार मई को आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम 2025 की बैठक में कही गई बात में दिखती है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में यूरोप के देशों पर तंज करते हुए कहा, ‘जब हम दुनिया की तरफ देखते हैं तो साझीदार ढूंढते हैं, उपदेश देने वाले नहीं। खासकर वे प्रवचनकर्ता, जो विदेश में प्रवचन देते हैं और अपने देश में अमल नहीं करते हैं’। यूरोप के संदर्भ में इस तरह की बातें वे पहले भी कह चुके हैं। लेकिन सोचें, यूरोप क्यों युद्ध में या सैन्य कार्रवाई में भारत का साझीदार बने?
क्या भारत यूरोप की लड़ाई में साझीदार बना है? यूरोप के देश तीन साल से रूस से लड़ रहे हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से फ्रांस, जर्मनी से लेकर ब्रिटेन तक सब पूरी ताकत से यूक्रेन के साथ खड़े हैं। लेकिन इस तीन साल की अवधि में भारत ने क्या किया? क्या भारत ने यूक्रेन और यूरोप का साथ दिया? नहीं! भारत ने सिर्फ प्रवचन दिया कि ‘यह युद्ध का समय नहीं है’। उलटे भारत की कूटनीति देखिए कि भारत ने रूस और यूक्रेन की लड़ाई में रूस को चुना। भारत की तेल कंपनियों ने पाबंदी के बावजूद रूस का तेल खरीद कर छप्पर फाड़ मुनाफा कमाया।
उनकी छप्पर फाड़ कमाई पर विंडफॉल गेन टैक्स लगा कर भारत ने भी खूब कमाई की लेकिन जयशंकर शिकायत यूरोप से कर रहे हैं! कायदे से उन्हें शिकायत रूस से करनी चाहिए कि यूक्रेन युद्ध के दौरान लगी पाबंदियों के बीच भारत ने उसकी अर्थव्यवस्था बचाने में सबसे बडा योगदान किया तो बदले में उसने क्या किया? वह तो चीन का पिछलग्गू है और वही करेगा, जो चीन करेगा। भारत के मामले में ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि वह खुल कर पाकिस्तान का साथ नहीं दे। लेकिन यह तो तय है कि चीन को नाराज करके वह भारत का साथ नहीं देगा।
यूरोप भारत का साझीदार हो सकता था लेकिन भारत के विदेश मंत्री को सबसे कमजोर यूरोपीय देश लगते हैं। इसलिए वे गाहे बगाहे उनके ऊपर बिना मतलब की टिप्पणियां करते रहते हैं। यह अलग बात है कि अमेरिका और चीन के खिलाफ उनका या भारत के किसी भी बड़े नेता का मुंह नहीं खुलता है। बहरहाल, भारत अगर चाहता है कि आतंकवाद का ढांचा पूरी तरह से नष्ट हो तो उसे विश्व बिरादरी में जनमत बनाने के बाद बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
दुनिया के देशों में जो प्रतिनिधिमंडल जा रहा है उसके सदस्यों को ब्रीफ देनी चाहिए कि वे दुनिया को बताएं कि पाकिस्तान में आतंकवाद का ढांचा है, पाकिस्तान भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े हुआ है और भारत अब उसके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करेगा। यह बताने के बाद भारत बिना किसी की परवाह किए कार्रवाई करे और आतंकवाद का ढांचा खत्म करे। अगर यह रोडमैप नहीं है तो इतना बड़ा प्रतिनिधिमंडल दुनिया भर के देशों में घुमाने का कोई मतलब नहीं है।
अगर इस प्रतिनिधिमंडल का मकसद दुनिया के सामने पाकिस्तान की पोल खोलना भर है तो वह दुनिया के देश जानते हैं। उनको पाकिस्तान के बारे में पता है। असल में भारत को अपने बारे में बताने की जरुरत है कि हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बड़ी कार्रवाई कर सकते हैं। अच्छा यह होगा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल दुनिया के देशों को बताए कि भारत परमाणु ब्लैकमेलिंग का शिकार नहीं होगा, भारत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार रोकने की धमकी में नहीं आएगा और भारत को इस बात की परवाह नहीं है कि चीन पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा करने का दम भर रहा है।
अगर भारत ऐसा करता है तो वह विश्व शक्ति वाली बात होगी। इराक से लेकर अफगानिस्तान पर हमले के बाद अमेरिका या यूक्रेन पर हमले के बाद रूस और हमास पर हमले के बाद इजराइल दुनिया के किसी देश को बताने या उसके सामने सफाई देने नहीं गए थे कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। भारत बता रहा है तो ठीक है लेकिन उसके बाद उसका बरताव विश्व शक्ति वाला होना चाहिए।