चुनावी मुकाबले में ‘इंडिया’

छब्बीस विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम कुछ इस ढंग से रखा, जिससे उसका शॉर्ट फॉर्म ‘इंडिया’ बने। इस तरह उन्होंने भारत के मतदाताओं के मन को छूने की कोशिश की है। इस प्रयास में उन्होंने दो शब्द अपने नाम के फुल फॉर्म में जोड़े- डेवलपमेंटल और इन्क्लूसिव। इस तरह इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया) बना। अगर थोड़ा पीछे मुड़ कर देखा जाए, तो जब यूपीए का शासन था, तब इन्क्लूसिव डेवलपमेंट शब्द काफी प्रचलित था। यूपीए ने अपनी विकास दृष्टि को इसी शब्द से व्यक्त किया था, जो वैसे नव-उदारवादी नीतियों के साथ सारी दुनिया में पहुंचा था। अर्थ यह है कि जो विकास हो, वह समावेशी हो। यानी उसके लाभ सभी तबकों तक पहुंचें। इसके लिए यूपीए के जमाने में एक सोशल एजेंडा अपनाया गया था, जिसे कार्यरूप देने के लिए सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनाई गई थी।

अब अगर सिर्फ नाम बनाने के लिए इन शब्दों को नहीं वापस नहीं गया है, तो कहा जा सकता है कि उसी विकास नजरिए के जरिए ‘इंडिया’ एनडीए का मुकाबला करने की रणनीति बनाएगा। इस बात की झलक नव-गठित गठबंधन के साझा बयान में भी मिली। इसमें मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए कहा गया है कि ‘इंडिया’ रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख भूमिका को बहाल करेगा। यह एक बड़ा वादा है। इसे पूरा करने की नए गठबंधन के पास क्या रणनीति है, इसका संकेत संभवतः जब यह अपना साझा न्यूनतम कार्यक्रम जारी करेगा, तब मिलेगा। फिलहाल, यह अपेक्षा जरूर जताई जा सकती है कि गठबंधन आज के तकाजे को देखते हुए शिक्षा और स्वास्थ्य को भी रणनीतिक क्षेत्र का हिस्सा माने। इन दो पैमानों पर देश में प्रयाप्त प्रगति ना होने का असर यह है कि देश आर्थिक विकास की अपनी संभावनाओं को भी हासिल नहीं कर पा रहा है। इन क्षेत्रों को निजी क्षेत्र के हाथ में छोड़ देने से आम जन का जीवन महंगा हुआ है, जिसका खराब असर उनकी कुल खुशहाली पर पड़ा है। इस सूरत को बदलने का संकल्प अगर नया गठबंधन ले, तो वह शायद इंडिया का दिल भी जीत पाएगा।

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