“मुख्यमंत्री के आदेशों के बावजूद एसीबी में खड़ा बुजुर्ग-डॉक्टर, क्या है सरकार की संवेदनहीनता?” : किरोड़ीलाल मीणा
जयपुर। राजस्थान में भ्रष्टाचार और सरकार की संवेदनहीनता को लेकर एक नई राजनीति जुड़ी खबर सामने आई है। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने शुक्रवार को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के मुख्यालय में पहुंचे, जहां उन्होंने 5000 करोड़ की वेटरनरी कॉलेज की प्रॉपर्टी पर कब्जा करने की शिकायत की। इस मामले में खास बात यह थी कि इस प्रॉपर्टी के मालिक डॉक्टर राज खरे ने बताया कि उनके साथ सिर्फ अनहोनी ही नहीं, बल्कि प्रशासन और सरकार की ओर से भी पूर्ण रूप से अनदेखी हो रही है।
किरोड़ीलाल मीणा ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने इस मामले में संज्ञान लिया था, लेकिन फिर भी 92 वर्षीय बुजुर्ग डॉक्टर राज खरे एसीबी के दरवाजे पर खड़े हैं। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार संवेदनशील है, लेकिन एसीबी में इस मामले की सुनवाई क्यों नहीं हो रही? मुख्यमंत्री को इस पर जवाब देना चाहिए, क्योंकि यह पूरी तरह से नकारात्मक स्थिति बन चुकी है।”
राजस्थान के जाने-माने डॉक्टर राज खरे ने लाखों रुपये की लागत से जयपुर में एक वेटरनरी कॉलेज खोला था। यह कॉलेज आज 4-5 हजार करोड़ की संपत्ति बन चुका है, लेकिन असामाजिक तत्वों ने यहां कब्जा कर लिया। डॉक्टर खरे का आरोप है कि 2019 से अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है, और एसीबी द्वारा दर्ज किए गए तीनों मामले भी ठंडे बस्ते में डाल दिए गए हैं।
किरोड़ीलाल ने कहा, “मुख्यमंत्री के आदेशों के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही है। सरकार और प्रशासन की ओर से इस मामले पर चुप्पी साधी जा रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरे मामले में काला धन इकट्ठा होने की भी संभावना है, जिसको लेकर ईडी और इनकम टैक्स विभाग में शिकायत दर्ज कराने की तैयारी की जा रही है।
डॉक्टर राज खरे ने अपनी आवाज़ उठाते हुए कहा कि “राजस्थान सरकार एक तरफ निवेशकों को आकर्षित करने की बातें करती है, लेकिन दूसरी तरफ हमें और जैसे निवेशकों को धोखा दिया जा रहा है।” उनका कहना था कि अगर इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो वे 9 दिसंबर से शुरू होने वाले राइजिंग राजस्थान अभियान का विरोध करेंगे।
डॉक्टर खरे और किरोड़ीलाल मीणा के साथ एसीबी मुख्यालय में बैठे इस धरने का मकसद एक महत्वपूर्ण संदेश देना था। किरोड़ीलाल ने इस धरने को लेकर कहा, “हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सरकार और प्रशासन इस मामले में ठोस कदम उठाए और जल्द से जल्द कब्जा हटाकर डॉक्टर खरे की प्रॉपर्टी वापस उन्हें सौंपे।”
यह मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत विरोध का नहीं है, बल्कि यह पूरे राज्य में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के खिलाफ एक तीखा संदेश है। अगर सरकार अपनी संवेदनशीलता और योजनाओं को वास्तविकता में बदलना चाहती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि इसके नागरिकों के साथ किए गए वादों और निवेशकों के अधिकारों का सम्मान हो।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से सवाल खड़ा किया है कि क्या राजस्थान सरकार और प्रशासन सचमुच निवेशकों के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद माहौल बना पाएगी, या फिर यह सिर्फ एक और राजनीति का खेल होगा?