विशेष सत्र से क्या आपत्ति है?

कांग्रेस और सीपीएम ने संसद का विशेष सत्र बुला कर उसमें पहलगाम कांड और उसके बाद हुई सैन्य कार्रवाई पर चर्चा की मांग की है। भाजपा ने इस मांग को खारिज कर दिया है लेकिन भाजपा के साथ साथ कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी के नेता शरद पवार ने भी इस विचार को खारिज किया है। उन्होंने कहा है कि संसद का विशेष सत्र बुला कर उसमें संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा नहीं की जा सकती है।

उनकी राय है कि सर्वदलीय बैठक बुला कर उसमें सारी बातें रखी जाएं। अब सवाल है कि ऐसी कौन सी संवेदनशील बात छूट गई है, भारतीय सेना ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं बता दी है? सेना ने तो यहां तक बताया है कि उसने कैसे रणनीति बनाई और पाकिस्तान के अंदर आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए कौन कौन से हथियार का इस्तेमाल किया।

हथियारों की पूरी ग्राफिक्स डिटेल सोमवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गई। इससे ज्यादा संवेदनशील जानकारी भला पार्टियों के नेताओं के पास क्या होगी, जिस पर चर्चा से भाजपा और शरद पवार दोनों हिचक रहे हैं!

संसद सत्र पर भाजपा और शरद पवार का रुख
गौरतलब है कि इससे पहले 1999 में कारगिल युद्ध के समय भी भाजपा की सरकार थी उसने संसद का विशेष सत्र बुला कर उस पर चर्चा कराने से इनकार कर दिया था, जबकि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1962 में चीन युद्ध के समय संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी और उनकी मांग पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू विशेष सत्र बुला कर युद्ध पर चर्चा कराई थी।

भारत और चीन का युद्ध 20 अक्टूबर 1962 के शुरू हुआ था और तभी राज्यसभा में भारतीय जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। उनकी मांग पर नेहरू सरकार ने विशेष सत्र आहूत किया। कई लोगों ने कहा कि सत्र की कार्रवाई गुप्त रखी जाए पर नेहरू ने इनकार कर दिया।

आठ नवंबर को युद्ध के बीच विशेष सत्र हुआ और नौ नवंबर को सदन में वाजपेयी बोले। उन्होंने नेहरू पर देश की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाया और कहा कि यह ‘महापाप’ है। वाजपेयी ने अपने भाषण में कहा कि यह शर्मनाक है कि आजादी के 15 साल बाद में भी भारतीय सैनिकों के पास सीमा पर पर्याप्त हथियार नहीं हैं। लेकिन उन्हीं वाजपेयी ने अपनी सरकार के समय विशेष सत्र नहीं बुलाया और अब नरेंद्र मोदी की सरकार भी इसके लिए तैयार नहीं हो रही है।

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