श्यामा प्रसाद मुखर्जीः एक महान व्यक्तित्व

भारत माता के महान सपूत डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जन्म जयंती है। 124 साल पहले 1901 में छह जुलाई को उनका जन्म हुआ था। अगले साल उनकी सवा सौवीं जयंती मनाई जाएगी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आजादी की लड़ाई के योद्धा के तौर पर और उसके ठीक बाद एक राष्ट्र के रूप में भारत को गढ़ने और उसे एक दिशा देने में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने महान योगदान दिया था। उनकी जयंती के मौके पर कृतज्ञ राष्ट्र अत्यंत आदर और लगाव के साथ उनका स्मरण कर रहा है। वे भारत के सर्वाधिक प्रेरक व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्होंने राजनीति, समाज, राष्ट्रीय सुरक्षा, शासन-प्रशासन और आर्थिक नीतियों को अपने विचारों से प्रभावित किया।

भारत की एकता और अखंडता के लिए किया गया उनका संघर्ष भारत की अमूल्य धरोहर है। वे भारतीय राजनीति के उन विरले लोगों में हैं, जिन्होंने सबसे पहले जम्मू कश्मीर के अलग संविधान का मुद्दा उठाया। उन्होंने उसे समाप्त करके जम्मू कश्मीर के भारत में संपूर्ण एकीकरण के मुद्दे को अपना जीवन संघर्ष बनाया और उस पर अपने प्राण न्योछावर किए। पांच अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 समाप्त करके जम्मू कश्मीर का संपूर्ण और वास्तविक एकीकरण भारत के साथ किया। यह डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि थी।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी किसी अन्य सामान्य राजनेता की तरह एक नेता नहीं थे, बल्कि जननेता होने के साथ साथ वे एक महान चिंतक और समाज सुधारक थे। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस ही हर विचारधारा के लोगों का मंच थी। तभी उसके साथ मिल कर डॉक्टर मुखर्जी ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। यह सही है कि डॉ. मुखर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन बाद में वे उसकी नीतियों से असंतुष्ट और निराश हो गए। मुस्लिम लीग से कांग्रेस के नीतिगत समझौतों की वजह से उनका कांग्रेस से मोहभंग हुआ। इसी वजह से वे 1939 में हिंदू महासभा से जुड़ गए। उस समय हिंदू महासभा एक महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी संगठन था, जो हिंदू हितों और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए आंदोलन करता था। डॉक्टर मुखर्जी 1944 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और इस पद पर रहते उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए।

उन्होंने भारत में मुस्लिम लीग के ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ की विचारधारा का खुलकर विरोध किया। उन्होंने कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियों पर सवाल उठाए और उसका विरोध किया। डॉक्टर मुखर्जी ने कांग्रेस, हिंदू महासभा और बाद में भारतीय जनसंघ के मंच से भारतीय राष्ट्रवाद, एकता और अखंडता के लिए अनथक संघर्ष किया। उनका जीवन, उनके विचार और उनके कार्य हर भारतवासी को राष्ट्रवाद की सच्ची भावना से परिचित कराते हैं। उनकी जयंती हमें उनके संघर्षों, भारतीय राजनीति और समाज व्यवस्था में उनके योगदान और उनके विचारों को याद करने का अवसर देती है। वे हमेशा एक अन्यतम स्वतंत्रता सेनानी, एक महान राजनेता, उद्भट विद्वान, मौलिक चिंतक और समाज सुधारक के रूप में याद किए जाएंगे।

कश्मीर के संबंध में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रहा। उन्होंने कश्मीर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 लागू करने का विरोध किया था। उनका कहना था कि कश्मीर को विशेष अधिकार देने से भारत की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने ‘एक प्रधान, एक निशान, और एक संविधान’ का आह्वान किया था। वे आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार में मंत्री बने थे लेकिन कश्मीर के मसले पर उन्होंने अपने विचारों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने 1953 में कश्मीर में भारतीय संविधान को पूरी तरह से लागू करने की मांग उठाई और कहा कि अगर भारत का संविधान वहां लागू होगा तभी यह प्रमाणित होगा कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।

उनका यह संघर्ष भारत की एकता और अखंडता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। हालांकि इसकी कीमत उनको अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ी। कश्मीर यात्रा के दौरान 1953 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसी संघर्ष के दौरान 23 जून 1953 को पुलिस हिरासत में नगर में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनके बलिदान ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी। उनके द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ उनके मूल्यों को लेकर आगे बढ़ा और आज दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल के तौर पर प्रतिष्ठित है। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए जिस वीरता और समर्पण का परिचय दिया उसे अनंतकाल तक याद किया जाता रहेगा।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के तत्कालीन सर संघचालक माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर यानी गुरूजी से विचार विमर्श के बाद 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। उनके साथ बलराज मधोक और पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी उस उपक्रम में शामिल थे। वही भारतीय जनसंघ आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में पुष्पित और पल्लवित हुआ है। देश की आजादी के बाद एक नए राजनीतिक दल के गठन का उनका उद्देश्य भारत में एक मजबूत और सशक्त राष्ट्रवाद की विचारधारा को स्थापित करना था। भारतीय जनसंघ को उन्होंने कांग्रेस के आइडिया ऑफ इंडिया के मुकाबले एक वैकल्पिक विचार के रूप में स्थापित किया, जो भारतीय समाज के सांस्कृतिक और राजनीतिक मूल्यों को ध्यान में रख कर कार्य करती थी।

भारतीय राजनीति में उनका अमूल्य योगदान सिर्फ भारतीय जनसंघ की स्थापना नहीं है, बल्कि सांस्कृति राष्ट्रवाद की भावना का विस्तार उनका सबसे अहम योगदान है। डॉक्टर मुखर्जी का मानना था कि भारतीय समाज की जड़ों में भारतीय संस्कृति और हिंदू सभ्यता के मूल तत्व हैं। उन्होंने भारतीय समाज में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात की, और इस बात पर जोर दिया कि भारत की ताकत उसकी सांस्कृतिक धरोहर, उसकी गौरवशाली इतिहास और हिंदू जीवन मूल्यों में निहित है। उन्होंने अंग्रेजों की बनाई भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार करके उसके जरिए भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित करने का रास्ता दिखाया।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दलगत राजनीति से ऊपर हमेशा हिंदू समाज की एकता और सामूहिकता को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने हिंदू समाज को जागरूक किया, उसे तुष्टिकरण की राजनीति के प्रति आगाह किया और आयातित विचारों से प्रभावित सांप्रदायिक ताकतों से बचाने के उपाय किए। उन्होंने हमेशा भारतीय समाज में विविधता को सम्मान देने और उसे संरक्षित रखने का महत्व बताया। वे उन विरले लोगों में से थे, जिन्होंने इस देश के हिंदुओं को अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करने की सीख दी।

उन्होंने हिंदू समाज में एकता को प्रोत्साहित करने के लिए समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के प्रति न्याय और समानता की बात कही। उन्होंने धर्म, जाति, और समुदाय के भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान किया और भारतीय समाज में एक समानता की ओर कदम बढ़ाने का समर्थन किया। वे भारत की कल्पना एक सशक्त राष्ट्र के तौर करते थे और चाहते थे कि उसमें हिंदू संस्कृति को गौरवपूर्ण स्थान मिला लेकिन साथ ही यह भी चाहते थे कि बाकी सभी धर्मों का सम्मान भी बना रहे।

राजनीति और समाज में ठोस योगदान की उनकी समझ अपनी शिक्षा दीक्षा और आरंभिक संस्कारों से बनी थी। वे बेहद योग्य और विद्वान व्यक्ति थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की थी। वे भारतीय संस्कृति और समाज के गहरे जानकार थे और हमेशा यह मानने थे कि भारतीयता के विकास के लिए एक मजबूत शैक्षिक ढांचे की आवश्यकता है। वे हमेशा कहते थे कि शिक्षा के विकास से ही भारत दुनिया में अग्रणी बन पाएगा और अपने गौरवशाली इतिहास की पुनरावृत्ति कर पाएगा। अपनी शिक्षा और देश बुनियादी समस्याओं के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि के आधार पर वे यह मानते थे कि भारत में समाज के साथ साथ आर्थिक सुधार की भी अत्यंत आवश्यकता है। उन्होंने हमेशा एक स्वतंत्र और सशक्त आर्थिक नीति की आवश्यकता महसूस की। जिस समय देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने की ओर बढ़ रहे थे उस समय डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राज्य के नियंत्रण के बजाए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने का समर्थन किया। उनका मानना था कि एक राष्ट्र की ताकत उसकी आर्थिक स्वतंत्रता से होती है। अंततः डॉक्टर मुखर्जी ही सही प्रमाणित हुए।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 को तब के कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी बंगाल प्रेसीडेंसी के कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश और समाजसेवी थे। उनका जन्म ऐसे परिवार में हुआ था, जो शिक्षा और समाज सेवा के प्रति समर्पित था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा के साथ साथ कानून की शिक्षा ने उनके विचारों और दृष्टिकोण को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तभी उनका व्यक्तित्व सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि बौद्धिक दृष्टिकोण से भी बेहद प्रभावशाली था।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का राजनीति में प्रवेश उनके विद्यार्थी जीवन में ही हुआ था और बाद में राजनीति के साथ जुड़ाव गहरा होता गया। वे इसे सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सुधारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। इन्हीं विचारों को ध्यान में रख कर उन्होंने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य एक मजबूत और अखंड भारत का निर्माण करना था। वे हमेशा भारत की कल्पना एक सशक्त लेकिन उदार राष्ट्र के रूप में करते थे जो किसी भी प्रकार की विदेशों से प्रभावित राजनीति और विचारधारा से मुक्त हो। उनका यह भी मानना था कि भारतीय राजनीति को धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर एकजुट किया जाना चाहिए और इसके लिए वे राष्ट्रवाद के प्रचार प्रसार आवश्यक मानते थे।

उनकी 124वीं जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र उनके जीवन के संघर्षों और विचारों को बड़े सम्मान के साथ याद कर रहा है। हमें आशा करनी चाहिए कि अगले साल आने वाली उनकी सवा सौवीं जयंती का समारोह पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाए और इस अवसर पर उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। उनकी सवा सौवीं जयंती के समारोहों की शुरुआत इस साल छह जुलाई से हो सकती है। पूरे साल चलने वाले समारोहों के जरिए पश्चिम बंगाल के करीब 10 करोड़ों लोगों के साथ साथ भारत के समस्त नागरिकों को डॉक्टर मुखर्जी के महान राष्ट्रवादी विचारों से परिचित कराया जाए और हिंदू समाज को अपने धार्मिक और सामाजिक मूल्यों के आधार पर एकजुट करने का प्रयास किया जाए। अगर भारत एक सशक्त और उदार राष्ट्र बनता है, जिसमें हिंदू विचार को गौरवपूर्ण स्थान मिलता है तो यह डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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